बच्चो के ऊपर बोझ Burden On Children

 


                                बच्चो के  ऊपर बोझ (रघुवीर सिंह पंवार 




 बात बड़ी छोटे मुह लेकिन ,जब के लोग विचारों।

मुझ पर लदी किताबें अब मेरा बोझ  उतारो।

 झरनों को तो जंगल में झरने की आजादी।

पर मुझे नहीं मस्ती में रहने की आजादी। 

बिन समझे बिन बुझे ही केवल लीखते  ही रहना |

 क्या घर में क्या बाहर केवल रटते ही रहना ?

 खेलकूद में जी भर कर समय कभी ना पाऊं |



 गुलदस्ते में कलियों सा घरमें ही मुरझाऊ |

 फूलों को तो फूलों  जैसी खिलने की  आजादी  |

भंवरी को भी भिनभिनाने  की है ,देखो आजादी |

फूल फूल के रस को है, पीने की आजादी |

 पंछी को भी पंछी जैसे उड़ने की आजादी |

 पर मुझ बच्चे को अब बच्चे सा ही रहने दो |

मुझको तो अब अपने ही बचपन में मिलने दो |

इस दुनिया में अब अपनी ही भाषा पढ़ने दो |

मुझको भी तो फूलों जैसा अब तो खिलने दो |

 बात बड़ी  छोटे मुंह लेकिन जब के लोग विचारों |

 मुझ पर लदी किताबें अब तो मेरा बोझ उतारो |


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