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फटी कमीज़ वाला अभिमान लघुकथा पिता-पुत्र के रिश्ते पर

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  फटी कमीज़ वाला अभिमान लघुकथा पिता-पुत्र के रिश्ते पर ( रघुवीर सिंह पंवार )  फटी कमीज़ वाला अभिमान   रेल की धीमी सीटी और भीड़भाड़ भरे प्लेटफॉर्म पर एक बूढ़ा व्यक्ति उतरा। कमर झुकी थी , आंखों पर मोटा चश्मा था और बदन पर एक पुरानी , जगह-जगह से फटी हुई सफेद कमीज़। हाथ में एक कपड़े की थैली थी — जिसमें कुछ पुराने अखबारों में लिपटे हुए घर के लड्डू , गांव का गुड़ और आम का आचार   मां के हाथ की चिट्ठी थी , जो अब इस दुनिया में नहीं रही।भगवान के धाम को चली गई | वह बूढ़ा व्यक्ति था कनीराम , जो अपने बेटे विजय   से मिलने शहर आया था — पहली बार , अपने जीवन में। जिस बेटे को बचपन में वह कंधे पर बिठाकर खेतों और   गाँव में घुमाता था , मिट्टी में खेलते-खेलते पढ़ाया था , और उसकी हर जिद को पूरा किया था उसी बेटे की पोस्टिंग अब शहर में बतौर जिलाधिकारी   के रूप में हो गई   थी। गांव के स्कूल से शहर के आईएएस ट्रेनिंग सेंटर तक की यह यात्रा बाप ने नहीं की थी , लेकिन हर कदम पर बेटे के पीछे छाया बनकर खड़ा रहा था। खुद एक जोड़ी चप्पल में वर्षों गुज़ार दिए , एक टाइम रुखा ...