एक झुमकी की कीमत

एक झुमकी की कीमत( कहानी ) ( रघुवीर सिंह पंवार ) मां , मेरी फीस माफ कर दो... अब नहीं पढ़ना मुझे!" मोना की आंखों से आंसू लगातार बह रहे थे। सामने उसकी मां – चुपचाप , भीगी आंखों से उसे देख रही थी। आंसुओं में डूबी मां ने कहा – " क्यों बेटी ? अब तो बस एक वर्ष बचा है... फिर तू मास्टरनी बन जाएगी।" मोना फफक पड़ी — " मास्टरनी नहीं मां , अब मुझे सिलाई-कढ़ाई सीखनी है। पड़ोस की आशा दीदी की तरह। पढ़-लिखकर भी वह आज उसी मशीन पर बैठी है , जो मैं रोज धागों से साफ करती हूं।" मोना सरकारी स्कूल में 11 वीं कक्षा में पढ़ रही थी। क्लास में सबसेहोनहार तेज़। लेकिन पिछले महीने स्कूल की किताबें खरीदने के लिए मां ने अपनी झुमकी गिरवी रखी थी। और अब 12 वीं की कोचिंग की फीस... ? नीरा हर रोज स्कूल जाती , लेकिन अब मन किताबों में नहीं लगता था।दिन भर अपनी फ़ीस के लिए चिंतित घर लौटकर मां को देखती — जो दूसरों के बर्तन मांजकर , कपडे धोकर ,दो-चार झाड़ू पोछे कर दिन काट रही थीं। मां की उम्र ढल रही थी , हाथ कांपते थे ,हाथ प...