औक़ात का आईना गरीब , समझकर किया गया अपमान

 गरीब समझकर अपमानप्रेरक लघुकथा





लग्जरी शोरूम में सादा कुर्ता पहने एक आदमी

सुबह के दस बजे थे 
शोरूम की कांच की दीवारें चमक रही थीं, AC की ठंडी हवा और महंगी कारों की कतारें अमीरी का प्रदर्शन कर रही थीं 
इसी माहौल में एक आदमी अंदर जाता  हुआसादा कुर्तापुरानी चप्पल गले में गमछा  और चेहरे पर गहरी शांति।

उसका नाम था मोहन 

रिसेप्शन पर बैठी युवती ने ऊपर से नीचे तक देखा।
नजर कुछ पल रुकीफिर जैसे फिसल गई।
यह नज़र सम्मान की नहींतौलने की थी।

 

पूर्व पत्नी और अपमान का पहला वार

अभी केबिन से तेज कदमों की आवाज़ आई।
ब्रांडेड कपड़ेऊँची एड़ीआत्मविश्वास से भरी चाल
नंदिनीशोरूम की मैनेजर।

नजर मोहन  पर पड़ी।
चेहरा सख्त हो गया।

तुम ?”
फिर व्यंग्य
यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है । यह लग्जरी कार का  शोरूम हैकोई सस्ता बाज़ार नहीं।

कुछ ग्राहक रुक गए।
किसी के चेहरे पर मुस्कान थीकिसी की आंखों में तिरस्कार।

 

गरीबीतलाक और टूटा रिश्ता

नंदिनी और मोहन  कभी पति-पत्नी थे ।
छोटा सा घरसीमित आमदनी और बड़े सपने।

नंदिनी सपनों से नहीं,
सपनों की कीमत से प्यार करती थी।

मेरी सहेलियों के पति बड़ी गाड़ियों में घूमते हैं,”
वह कहती,
और मैं तुम्हारे संघर्ष में फंसी हूँ।

समीर बस इतना कहता
थोड़ा वक्त दो।

लेकिन नंदिनी ने वक्त नहीं दिया।
एक दिन बोली

मैं इस गरीबी में नहीं जी सकती।
और रिश्ता खत्म हो गया।

 

संघर्ष की चुपचाप शुरू हुई यात्रा

तलाक के बाद मोहन ने शहर बदल लिया ।
दिन में नौकरीरात में पढ़ाई ।

कभी किताबें,
कभी ऑनलाइन कोर्स,
कभी असफल प्रयोग।

जेब कई बार खाली रही,
लेकिन इरादे नहीं।

उसने सीखा कि
पैसा मेहनत से नहीं,
समझ और धैर्य से बनता है।

धीरे-धीरे उसने अपना काम शुरू किया
छोटालेकिन ईमानदारी से ।

नाम नहींभरोसा बना।
और वह उसकी असली पूंजी बना

 

शोरूम में लौटना: वही दरवाज़ानया इंसान

सरआपको क्या देखना  है?”
एक सेल्समैन ने संकोच से पूछा।

नंदिनी ने तुरंत कहा
इनका समय खराब मत करो।

मोहन  मुस्कुराया।
मैनेजर से मिलना है ।

मैं हूँ,”
नंदिनी ने गर्व से कहा।

समीर ने जेब से एक फाइल निकाली और काउंटर पर रख दी ।

इसे देख लीजिए ।

 

जब काग़ज़ों ने औक़ात बदल दी

नंदिनी ने फाइल खोली।
पहला पन्नादूसरा पन्ना
उसका चेहरा सफेद पड़ गया ।

सेल्समैन ने पढ़ते ही कहा
मैडम… ये तो शोरूम खरीदने के दस्तावेज हैं ।

शोरूम में सन्नाटा छा गया।

नंदिनी की आवाज़ कांप गई
तुम मजाक कर रहे हो ?”

समीर ने शांत स्वर में कहा
मज़ाक उस दिन हुआ था,
जब तुमने मुझे निराश  समझ लिया था।

घमंड  टूटने का पल

नंदिनी की आंखों में नमी आ गई।
तुमने बताया क्यों नहीं?”
उसने लगभग गिड़गिड़ाकर पूछा।

मोहन  ने पहली बार उसकी आंखों में सीधे देखा।

जब मैं टूट रहा था,
तब तुमने नहीं पूछा।
और जो मुश्किल वक्त में साथ न दे,
उसे अच्छे वक्त में जवाब देने की ज़रूरत नहीं होती

 

असली जीत: शोरूम नहींआत्मसम्मान

दस्तावेजों पर साइन हो गए।
कोई ताली नहीं बजी।

समीर बाहर निकल गया
वही सादा कुर्तावही शांत चाल।

पीछे रह गई नंदिनी
महंगे कपड़ों में भी खाली।

 

लघुकथा की सीख: किसी को हालात से मत आंकिए

गरीबी पैसे की नहीं होती,
सोच की होती है।

और अमीरी
शोरूम खरीदने में नहीं,
खुद को गिरने से बचाने में होती है।

जो लोग इंसान को
उसके कपड़ों और आज से आंकते हैं,
वक्त उन्हें कल का आईना दिखा देता है।

Comments

Popular posts from this blog

जीवन में सफल होने के लिए क्या करे (HOW TO BE SUCCEES FUL IN LIFE )

मध्यप्रदेश: भारत का हृदय स्थल | गठन, इतिहास, संस्कृति, नदियाँ, जिले और पर्यटन की सम्पूर्ण जानकारी

हनुमान चालीसा अर्थ सहित (लाइन बाय लाइन) | सरल हिंदी में सम्पूर्ण व्याख्या