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कीमत क्या ?

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कीमत क्या  ?   ( कविता)   सुगंध नहीं सुंदरता में तो उस सुमन की कीमत क्या ?  प्रेम नहीं मानवता में तो उस हृदय की कीमत क्या ? हरियाली नई हरे हृदय तो उस बाग की कीमत क्या  ? स्वच्छ  जल जो नहीं मिले तो उस गागर की कीमत क्या ?   हर प्राणी प्यासा जाए तो, उस सागर की कीमत क्या ?  सौगंध खाकर नहीं निभाए तो उस वचन की कीमत क्या  ? ब्रह्म ज्ञान का नहीं ज्ञाता   तो, उस ब्राह्मण की कीमत क्या ?  आत्मशांति  जो नहीं मिले तो, विश्व शांति की कीमत क्या ?   रक्षक ही बन जाए भक्षक ,तो रक्षा की कीमत क्या  ?  बागार ही खा जाए खेत, तो रखवाले की कीमत क्या ?   सठ न सुधरे सदुपयोग से , तो सत्संग की कीमत क्या  ?  शिक्षित होकर शिक्षा नहीं दे ,तो उस शिक्षक कीमत क्या ? परोपकार जो नहीं किया , तो पद पाने की कीमत क्या ?  आए अतिथि आदर नहीं तो आतिथ्य की कीमत क्या ? साथी होकर साथ ना निभाए तो उस साथी की कीमत क्या ? भाई भाई मैं नहीं एकता तो भाईचारे की कीमत क्या  ?  सुगंध नहीं सुंदरता में तो  ,उस सुमन की कीमत क्या ? यह भी पड़े   उज्जैन नगरी का रहस्य (Secret of Ujjain city   मध्यप्रदेश भारत

नर्मदा जयंती पर माँनर्मदा की स्तुति

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 भारत देश महान देश है | यंहा नदियों को भी माँ का दर्जा दिया गया है  माँ नर्मदा का इतिहास प्राचीन एव विशाल है |                                                             नर्मदा जयंती पर  माँ    नर्मदा  की स्तुति    ॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥ सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 1 ॥ त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 2 ॥ महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 3 ॥ गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 4 ॥ अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देव

अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन किया जाने वाली वंदना ( श्री राम स्तुती )

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                  ॥दोहा॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं  ॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥ भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं  ॥३॥ शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं  ॥५॥ मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥ एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली  ॥७॥             ॥सोरठा॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे। रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास ज्यादा जाने  और  लेख भी पड़े     बाबा महाकाल की नगरी  उज्जैन  के  के दर्शनीय  स्थल उज्जैन नगरी का रहस्य (Secret of Ujjain city v

उज्जैन नगरी के दर्शनीय स्थल , भर्तृहरि की प्राचीन गुफा

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  भर्तृहरि की प्राचीन गुफा                                             भर्तृहरि की प्राचीन गुफा देवीजी के मंदिर के निकट ही शिप्रा तट के ऊपरी माग में भर्तृहरि की गुफा है । प्रसिद्ध विद्वान् शतकत्रय के प्रणेय राजर्षि की यहसाधना स्थली है बौद्धकालीन शिल्प की यह रचना है। यहाँ नाथ सम्प्रदाय के साधुओं का स्थान है । भर्तृहरि ने बंधु विक्रम को राज्य देकर वैराग्यवश नाथ सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण कर ली थी। अपनी प्रिय पत्नी महारानी पिंगला के अवसान पर उन्हें संसार   से विरक्ति हो ई थी। इस गुफा में उन्होंने योगसाधना की थी । दक्षिण में गुफा के अन्दर गोपीचन्द की मूर्ति है। गुफा में प्रवेश करने का एक सँकरा मार्ग है। प्रकाश की व्यवस्था करके यहाँ प्रवेश किया जाता है ।                                                                              कालभैरव भैरवगढ़ शिप्रा नदी के तट पर ही पुरानी अवंती के प्रमुख देव कालभैरव का मंदिर है । चारों और परकोटा बना हुआ है । टीले पर बहुत सुन्दर एकान्त स्थान है । भैरव गढ़ की बस्ती पास ही है और यह नाम इन्हीं भैरव के कारण है। प्रवेश द्वार के ऊपर चौघड़िये बजा करते हैं। कालभ

उज्जैन के सिद्धनाथ तीर्थ का महत्त्व

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        देवी पार्वती ने स्वयं लगाया था ये वटवृक्ष, मुगलों ने इसे कटवा कर जड़वा दिए थे लोहे के तवे   16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में लोग अपने घरों में तो पूजा आदि करते ही हैं, साथ ही पवित्र तीर्थों पर भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करते हैं। हमारे देश में अनेक ऐसे तीर्थ हैं जो पिंडदान, तर्पण आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक स्थान है उज्जैन का सिद्धनाथ तीर्थ। इसे प्रेतशीला तीर्थ भी कहा जाता है। यहां दूर-दूर से लोग अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं।मान्यता  हेकी इस तीर्थ में में तर्पण करने से मृत आत्मा  को  मोक्ष मिलता है  |   यहां लगभग 150 परिवारों से जुड़े 700 पुजारी तर्पण, श्राद्ध आदि करवाते हैं। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित हे  यह  स्थान सिद्धनाथ तीर्थ उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में है।  पतित पावनी मोक्ष दायनी  क्षिप्रा नदी के तट पर होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस स्थान पर एक विशाल बरगद का पेड़ है। इसे सिद्धवट कहा जाता है। प्रयाग और गया में जिस तरह अक्षयवट का महत्व माना जाता है उसी प्रकार उज्जैन में सिद्धवट है। मान्यता है इस पेड़ को स्वयं माता पार

शिक्षक दिवस (Teacher's Day )

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  शिक्षक दिवस हमारे जीवन में एक शिक्षक कितना महत्त्वपूर्ण होता है इस बात को एलेक्जेंडर महान के इन शब्दों से समझा जा सकता है: मैं जीने के लिए अपने पिता का ऋणी हूँ, पर अच्छे से जीने के लिए अपने गुरु का. भारत भूमि पर अनेक विभूतियों ने अपने ज्ञान से हम सभी का मार्ग दर्शन किया है। उन्ही में से एक महान विभूति शिक्षाविद्, दार्शनिक, महानवक्ता एवं आस्थावान विचारक डॉ. सर्वपल्लवी राधाकृष्णन जी ने शिक्षा के क्षेत्र में अमूल्य योगदान दिया है। और उन्ही के जन्मदिन को हम शिक्षक दिवस के रूप में मनाते हैं। डॉ. राधाकृष्णन की मान्यता थी कि यदि सही तरीके से शिक्षा दी जाय़े तो समाज की अनेक बुराईयों को मिटाया जा सकता है ऐसे संस्कारित एवं शिष्ट माकूल जवाब से किसी को आहत किये बिना डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी ने भारतीयों को श्रेष्ठ बना दिया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी का मानना था कि व्यक्ति निर्माण एवं चरित्र निर्माण में शिक्षा का विशेष योगदान है। वैश्विक शान्ति, वैश्विक समृद्धि एवं वैश्विक सौहार्द में शिक्षा का महत्व अतिविशेष है। उच्चकोटी के शिक्षाविद् डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन जी को भारत के प्रथम राष्ट्रपति