मजदूर आज मजबूर है (laborers are helpless today)

मजदूर आज मजबूर है ( कविता ) राष्ट्र निर्माता मजदूर आज मजबूर है , दर – दर की ठोकरे खाकर घर से दूर है | न रहने का आशियाना न घर का ठिकाना , सब कुछ सहकर भी परिवार से दूर है | मजदूर आज भी मजबूर है | हजारो मिल पेदल चल कर बच्चो को कंधो पर लेकर , घर की राह पर पेदल चलने को मजबूर है | न खाने को निवाला न जेब मे पैसा फिर भी अपने कृतव्य पथ पर निष्ठावान की तरह अडिग है | क्योंकि ? राष्ट्र का कर्णधार है फिर भी सरकार के आगे मजबूर है | बच्चे भूखे वो भी भूखा न दाल न आटा है | सुनी सड्को पर खून का पसीना बहाकर , सारे सपने चकनाचूर है | क्योंकि वह मजबूर है ? मजदूर आज मजबूर है उसकी दारुण व्यथा सुन कर प्रशासन भी मोंन है , कातर निगाहों से देख कर कब आयेगा ठिकाना यह सोच कर मजबूर है | जिसने बनाई इमारते, महल लेकिन उनमे रहने के लिए आतुर है | क्योकि वह मजबूर है ? यदि वह काम करना छोड़ दे तो दुनिया मे व...