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संघर्ष की राह कहानी भाग 1

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                                                       संघर्ष की राह कहानी भाग  1 भारत देश कृषि प्रधान देश है  |  भारत देश की एक तिहाई आबादी कृषि करके अनाज पैदा कर देशवासियों के पेट के   भूख की ज्वाला को शांत करते हैं | लोग अन्न   ग्रहण करके जीवित रहते हैं  | इसका श्रेय किसान को जाता है | दुनिया को अन्न   देने वाले किसान दिन-रात चिलचिलाती   धूप , कंपकपाती ठंड और बारिश में कार्य करके किसान खेती करते हैं  | तभी कहीं जाकर दुनिया के लोगों का पेट भर पाता है |  लेकिन किसान को उसकी मेहनत का फल उसके कार्य के अनुसार नहीं मिल पाता है | कभी कम वर्षा , अतिवृष्टि , अनावृष्टि ओलों से उसकी फसल नष्ट हो जाती हैं | इस कारण वह अपने परिवार का भरण पोषण , बच्चों की उच्च शिक्षा , बेटे बेटियों की शादी के अरमान भी पुरे   नहीं कर पाता है  | हमारे देश के किसान की हालत दयनीय होती जा रही है ...

गुरु: अंधकार में उजाले की सांस"

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  गुरु: अंधकार में उजाले की सांस" जब शब्द थम जाएँ, पर राह बतानी हो, जब जीवन उलझे, पर सुलझानी कहानी हो। तब एक स्वर उभरता है शून्य से— जो खुद जलकर दिखाता रौशनी का पथ, वही तो हैं — गुरु । गुरु कोई नाम नहीं, वो तो चेतना है, ध्वनि है, हर अनसुनी सीख का पहला स्पंदन है। वो सिर्फ पढ़ाते नहीं, जीवन जीना सिखाते हैं। कभी माँ की तरह लोरी में, कभी पिता की तरह डांट में, कभी मित्र की तरह साथ में, गुरु बनकर वो हर मोड़ पर हमारे साथ होते हैं। उन्होंने अक्षर दिए — पर अर्थ हमने खुद ढूंढ़े नहीं, उन्होंने चरित्र गढ़ा — पर मूरत हमने कभी देखी नहीं। गुरु पूर्णिमा के इस पावन क्षण में, हम झुकते हैं श्रद्धा से — उन चरणों में जहां से ज्ञान की गंगा बहती है। हे गुरु! आप न होते तो हम क्या होते? शब्द होते, पर अर्थ नहीं। स्वर होते, पर संगीत नहीं। जीवन होता, पर दिशा नहीं। आपने जो दिया — वो अमूल्य है। आपने जो छुआ — वो अमर है। आपके बिना हम सिर्फ शरीर हैं, आपने आत्मा को जाग्रत किया। 🙏 आज आपके चरणों में पूर्ण समर्पण है। हर दिन आपका आभार, पर आज विशेष नमन है। यह भी पड़े   गुरुपूर्णिमा:...

जब बेटे को पिता से शर्म आने लगी

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  जब बेटे को पिता से शर्म आने लगी  –  एक भावनात्मक सच्चाई पिता-पुत्र के रिश्ते पर आधारित एक हृदयस्पर्शी हिंदी कहानी)   ( पिता-पुत्र के रिश्ते पर आधारित एक हृदयस्पर्शी हिंदी कहानी) धूप तेज थी ,  मगर चेहरे पर उम्मीद की ठंडक थी। एक वृद्ध ,  थका-हारा ,  पसीने से भीगा आदमी शहर के बड़े ऑफिस की ओर बढ़ रहा था। उसके हाथ में मिठाई का डिब्बा था ,  और दिल में सालों की मेहनत से उपजा गर्व — क्योंकि आज वो अपने   बेटे ,  एक   बड़े अधिकारी ,  से मिलने आया था। उसका नाम था   शंकर लाल  ,  जो कभी रिक्शा चलाता था ,  कभी माली का कम करता था ,   कभी दिहाड़ी करता — सिर्फ इसलिए कि उसका बेटा   प्रमोद    पढ़-लिखकर एक दिन बड़ा आदमी बने।उसके बुढ़ापे का सहारा बने  आज प्रमोद  शहर का बड़ा अफसर है। पिता  उसी बेटे से मिलने पहली बार उसके ऑफिस पहुंचा। गेट पर रुककर बोला , " बेटा है मेरा ,  प्रमोद ... उससे मिलना है।" सुरक्षा गार्ड ने फोन किया। जवाब आया — " बोल दो मीटिंग में हूं। और आगे से ऐसा कोई आए तो अंदर ...

फटी कमीज़ वाला अभिमान लघुकथा पिता-पुत्र के रिश्ते पर

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  फटी कमीज़ वाला अभिमान लघुकथा पिता-पुत्र के रिश्ते पर ( रघुवीर सिंह पंवार )  फटी कमीज़ वाला अभिमान   रेल की धीमी सीटी और भीड़भाड़ भरे प्लेटफॉर्म पर एक बूढ़ा व्यक्ति उतरा। कमर झुकी थी , आंखों पर मोटा चश्मा था और बदन पर एक पुरानी , जगह-जगह से फटी हुई सफेद कमीज़। हाथ में एक कपड़े की थैली थी — जिसमें कुछ पुराने अखबारों में लिपटे हुए घर के लड्डू , गांव का गुड़ और आम का आचार   मां के हाथ की चिट्ठी थी , जो अब इस दुनिया में नहीं रही।भगवान के धाम को चली गई | वह बूढ़ा व्यक्ति था कनीराम , जो अपने बेटे विजय   से मिलने शहर आया था — पहली बार , अपने जीवन में। जिस बेटे को बचपन में वह कंधे पर बिठाकर खेतों और   गाँव में घुमाता था , मिट्टी में खेलते-खेलते पढ़ाया था , और उसकी हर जिद को पूरा किया था उसी बेटे की पोस्टिंग अब शहर में बतौर जिलाधिकारी   के रूप में हो गई   थी। गांव के स्कूल से शहर के आईएएस ट्रेनिंग सेंटर तक की यह यात्रा बाप ने नहीं की थी , लेकिन हर कदम पर बेटे के पीछे छाया बनकर खड़ा रहा था। खुद एक जोड़ी चप्पल में वर्षों गुज़ार दिए , एक टाइम रुखा ...