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नर्मदा जयंती पर माँनर्मदा की स्तुति

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 भारत देश महान देश है | यंहा नदियों को भी माँ का दर्जा दिया गया है  माँ नर्मदा का इतिहास प्राचीन एव विशाल है |                                                             नर्मदा जयंती पर  माँ    नर्मदा  की स्तुति    ॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥ सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 1 ॥ त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 2 ॥ महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 3 ॥ गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख...

अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन किया जाने वाली वंदना ( श्री राम स्तुती )

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                  ॥दोहा॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं  ॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥ भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं  ॥३॥ शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं  ॥५॥ मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥ एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली  ॥७॥             ॥सोरठा॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे। रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास ज्यादा जाने  और  लेख भी पड़े     READMPRE  संघर्ष की राह कहानी भाग ...

उज्जैन नगरी के दर्शनीय स्थल , भर्तृहरि की प्राचीन गुफा

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  भर्तृहरि की प्राचीन गुफा                                             भर्तृहरि की प्राचीन गुफा देवीजी के मंदिर के निकट ही शिप्रा तट के ऊपरी माग में भर्तृहरि की गुफा है । प्रसिद्ध विद्वान् शतकत्रय के प्रणेय राजर्षि की यहसाधना स्थली है बौद्धकालीन शिल्प की यह रचना है। यहाँ नाथ सम्प्रदाय के साधुओं का स्थान है । भर्तृहरि ने बंधु विक्रम को राज्य देकर वैराग्यवश नाथ सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण कर ली थी। अपनी प्रिय पत्नी महारानी पिंगला के अवसान पर उन्हें संसार   से विरक्ति हो ई थी। इस गुफा में उन्होंने योगसाधना की थी । दक्षिण में गुफा के अन्दर गोपीचन्द की मूर्ति है। गुफा में प्रवेश करने का एक सँकरा मार्ग है। प्रकाश की व्यवस्था करके यहाँ प्रवेश किया जाता है ।                                                               ...