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मजदूर आज मजबूर है (laborers are helpless today)

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  मजदूर आज मजबूर है  (  कविता ) राष्ट्र निर्माता   मजदूर आज मजबूर है , दर – दर की ठोकरे खाकर घर से दूर है  | न रहने का आशियाना न   घर का ठिकाना , सब कुछ सहकर   भी परिवार से दूर है | मजदूर   आज भी मजबूर है | हजारो मिल पेदल चल कर   बच्चो को कंधो पर लेकर , घर की राह पर पेदल चलने को मजबूर है  | न खाने को निवाला न जेब मे पैसा फिर भी अपने कृतव्य पथ पर निष्ठावान की तरह अडिग है  | क्योंकि  ?  राष्ट्र का कर्णधार है   फिर भी सरकार के आगे   मजबूर है | बच्चे भूखे   वो भी भूखा न दाल न आटा है  | सुनी सड्को पर खून का पसीना बहाकर , सारे सपने चकनाचूर है  |   क्योंकि   वह मजबूर है  ? मजदूर आज मजबूर है उसकी दारुण व्यथा सुन कर   प्रशासन भी मोंन है  ,  कातर निगाहों से देख कर   कब आयेगा ठिकाना यह सोच कर मजबूर है  | जिसने बनाई इमारते, महल लेकिन उनमे रहने के लिए आतुर है  |    क्योकि वह मजबूर है  ? यदि वह काम करना छोड़ दे तो   दुनिया मे विकास अवरुद्ध हो जाएगा  | दो जून की रोटी के लिए तरस रहा उसकी सहनशीलता देखो, क्योंकि वह मजदूर मजबूर है  ? राजनीति की रोटी सेकने वालो के लिए वह एक दाव है  ,

कीमत क्या ?

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कीमत क्या  ?   ( कविता)   सुगंध नहीं सुंदरता में तो उस सुमन की कीमत क्या ?  प्रेम नहीं मानवता में तो उस हृदय की कीमत क्या ? हरियाली नई हरे हृदय तो उस बाग की कीमत क्या  ? स्वच्छ  जल जो नहीं मिले तो उस गागर की कीमत क्या ?   हर प्राणी प्यासा जाए तो, उस सागर की कीमत क्या ?  सौगंध खाकर नहीं निभाए तो उस वचन की कीमत क्या  ? ब्रह्म ज्ञान का नहीं ज्ञाता   तो, उस ब्राह्मण की कीमत क्या ?  आत्मशांति  जो नहीं मिले तो, विश्व शांति की कीमत क्या ?   रक्षक ही बन जाए भक्षक ,तो रक्षा की कीमत क्या  ?  बागार ही खा जाए खेत, तो रखवाले की कीमत क्या ?   सठ न सुधरे सदुपयोग से , तो सत्संग की कीमत क्या  ?  शिक्षित होकर शिक्षा नहीं दे ,तो उस शिक्षक कीमत क्या ? परोपकार जो नहीं किया , तो पद पाने की कीमत क्या ?  आए अतिथि आदर नहीं तो आतिथ्य की कीमत क्या ? साथी होकर साथ ना निभाए तो उस साथी की कीमत क्या ? भाई भाई मैं नहीं एकता तो भाईचारे की कीमत क्या  ?  सुगंध नहीं सुंदरता में तो  ,उस सुमन की कीमत क्या ? यह भी पड़े   उज्जैन नगरी का रहस्य (Secret of Ujjain city   मध्यप्रदेश भारत

नर्मदा जयंती पर माँनर्मदा की स्तुति

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 भारत देश महान देश है | यंहा नदियों को भी माँ का दर्जा दिया गया है  माँ नर्मदा का इतिहास प्राचीन एव विशाल है |                                                             नर्मदा जयंती पर  माँ    नर्मदा  की स्तुति    ॥ श्री नर्मदा अष्टकम ॥ सबिंदु सिन्धु सुस्खल तरंग भंग रंजितम द्विषत्सु पाप जात जात कारि वारि संयुतम कृतान्त दूत काल भुत भीति हारि वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 1 ॥ त्वदम्बु लीन दीन मीन दिव्य सम्प्रदायकम कलौ मलौघ भारहारि सर्वतीर्थ नायकं सुमस्त्य कच्छ नक्र चक्र चक्रवाक् शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 2 ॥ महागभीर नीर पुर पापधुत भूतलं ध्वनत समस्त पातकारि दरितापदाचलम जगल्ल्ये महाभये मृकुंडूसूनु हर्म्यदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 3 ॥ गतं तदैव में भयं त्वदम्बु वीक्षितम यदा मृकुंडूसूनु शौनका सुरारी सेवी सर्वदा पुनर्भवाब्धि जन्मजं भवाब्धि दुःख वर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देवी नर्मदे ॥ 4 ॥ अलक्षलक्ष किन्न रामरासुरादी पूजितं सुलक्ष नीर तीर धीर पक्षीलक्ष कुजितम वशिष्ठशिष्ट पिप्पलाद कर्दमादि शर्मदे त्वदीय पाद पंकजम नमामि देव

अखंड रामायण के पाठ में प्रमुखता से वाचन किया जाने वाली वंदना ( श्री राम स्तुती )

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                  ॥दोहा॥ श्री रामचन्द्र कृपालु भजुमन हरण भवभय दारुणं । नव कंज लोचन कंज मुख कर कंज पद कंजारुणं  ॥१॥ कन्दर्प अगणित अमित छवि नव नील नीरद सुन्दरं । पटपीत मानहुँ तडित रुचि शुचि नोमि जनक सुतावरं ॥२॥ भजु दीनबन्धु दिनेश दानव दैत्य वंश निकन्दनं । रघुनन्द आनन्द कन्द कोशल चन्द दशरथ नन्दनं  ॥३॥ शिर मुकुट कुंडल तिलक चारु उदारु अङ्ग विभूषणं । आजानु भुज शर चाप धर संग्राम जित खरदूषणं ॥४॥ इति वदति तुलसीदास शंकर शेष मुनि मन रंजनं । मम् हृदय कंज निवास कुरु कामादि खलदल गंजनं  ॥५॥ मन जाहि राच्यो मिलहि सो वर सहज सुन्दर सांवरो । करुणा निधान सुजान शील स्नेह जानत रावरो ॥६॥ एहि भांति गौरी असीस सुन सिय सहित हिय हरषित अली। तुलसी भवानिहि पूजी पुनि-पुनि मुदित मन मन्दिर चली  ॥७॥             ॥सोरठा॥ जानी गौरी अनुकूल सिय हिय हरषु न जाइ कहि । मंजुल मंगल मूल वाम अङ्ग फरकन लगे। रचयिता: गोस्वामी तुलसीदास ज्यादा जाने  और  लेख भी पड़े     बाबा महाकाल की नगरी  उज्जैन  के  के दर्शनीय  स्थल उज्जैन नगरी का रहस्य (Secret of Ujjain city v

उज्जैन नगरी के दर्शनीय स्थल , भर्तृहरि की प्राचीन गुफा

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  भर्तृहरि की प्राचीन गुफा                                             भर्तृहरि की प्राचीन गुफा देवीजी के मंदिर के निकट ही शिप्रा तट के ऊपरी माग में भर्तृहरि की गुफा है । प्रसिद्ध विद्वान् शतकत्रय के प्रणेय राजर्षि की यहसाधना स्थली है बौद्धकालीन शिल्प की यह रचना है। यहाँ नाथ सम्प्रदाय के साधुओं का स्थान है । भर्तृहरि ने बंधु विक्रम को राज्य देकर वैराग्यवश नाथ सम्प्रदाय की दीक्षा ग्रहण कर ली थी। अपनी प्रिय पत्नी महारानी पिंगला के अवसान पर उन्हें संसार   से विरक्ति हो ई थी। इस गुफा में उन्होंने योगसाधना की थी । दक्षिण में गुफा के अन्दर गोपीचन्द की मूर्ति है। गुफा में प्रवेश करने का एक सँकरा मार्ग है। प्रकाश की व्यवस्था करके यहाँ प्रवेश किया जाता है ।                                                                              कालभैरव भैरवगढ़ शिप्रा नदी के तट पर ही पुरानी अवंती के प्रमुख देव कालभैरव का मंदिर है । चारों और परकोटा बना हुआ है । टीले पर बहुत सुन्दर एकान्त स्थान है । भैरव गढ़ की बस्ती पास ही है और यह नाम इन्हीं भैरव के कारण है। प्रवेश द्वार के ऊपर चौघड़िये बजा करते हैं। कालभ