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उज्जैन के सिद्धनाथ तीर्थ का महत्त्व

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        देवी पार्वती ने स्वयं लगाया था ये वटवृक्ष, मुगलों ने इसे कटवा कर जड़वा दिए थे लोहे के तवे   16 दिनों तक चलने वाले श्राद्ध पक्ष में लोग अपने घरों में तो पूजा आदि करते ही हैं, साथ ही पवित्र तीर्थों पर भी अपने पितरों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण, पिंडदान करते हैं। हमारे देश में अनेक ऐसे तीर्थ हैं जो पिंडदान, तर्पण आदि के लिए प्रसिद्ध हैं। ऐसा ही एक स्थान है उज्जैन का सिद्धनाथ तीर्थ। इसे प्रेतशीला तीर्थ भी कहा जाता है। यहां दूर-दूर से लोग अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं।मान्यता  हेकी इस तीर्थ में में तर्पण करने से मृत आत्मा  को  मोक्ष मिलता है  |   यहां लगभग 150 परिवारों से जुड़े 700 पुजारी तर्पण, श्राद्ध आदि करवाते हैं। क्षिप्रा नदी के तट पर स्थित हे  यह  स्थान सिद्धनाथ तीर्थ उज्जैन के भैरवगढ़ क्षेत्र में है।  पतित पावनी मोक्ष दायनी  क्षिप्रा नदी के तट पर होने से इसका महत्व और भी बढ़ गया है। इस स्थान पर एक विशाल बरगद का पेड़ है। इसे सिद्धवट कहा जाता है। प्रयाग और गया में जिस तरह अक्षयवट का महत्व माना जाता है उसी प्रकार उज्जैन में सिद्धवट है। मान्यता है इस पेड़ को स्वयं माता पार