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महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् | Mahishasura Mardini Stotram in Sanskrit & Hindi | देवी दुर्गा की शक्तिशाली प्रार्थना

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  🔹 भूमिका (Introduction) सनातन संस्कृति में देवी शक्ति की उपासना का विशेष महत्व है। जब अधर्म अपने चरम पर पहुँचता है, तब शक्ति स्वयं प्रकट होकर उसका विनाश करती है। महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् इसी दिव्य शक्ति की वंदना है, जिसमें माँ दुर्गा के उस स्वरूप का वर्णन है जिसने महिषासुर जैसे अहंकारी असुर का वध कर देवताओं और मानवता की रक्षा की। यह स्तोत्र न केवल एक धार्मिक रचना है, बल्कि साहस, आत्मबल और धर्म की विजय का प्रतीक भी है। नवरात्रि, दुर्गाष्टमी, शुक्रवार तथा विशेष साधना काल में इसका पाठ अत्यंत फलदायी माना गया है। 🔹 महिषासुर मर्दिनी स्तोत्र क्या है? महिषासुर मर्दिनी स्तोत्रम् की रचना आदि शंकराचार्य द्वारा की गई मानी जाती है। यह संस्कृत भाषा में रचित एक स्तुति है, जिसमें माँ दुर्गा के पराक्रम, सौंदर्य, करुणा और शक्ति का भावपूर्ण वर्णन मिलता है। यह स्तोत्र इस बात का संदेश देता है कि— अहंकार चाहे कितना भी शक्तिशाली क्यों न हो, अंततः सत्य और धर्म की ही विजय होती है। 🔹 Mahishasura Mardini Stotram का ऐतिहासिक महत्व पौराणिक कथाओं के अनुसार, महिषासुर नामक असुर को ब्रह्मा से...

औक़ात का आईना गरीब , समझकर किया गया अपमान

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  गरीब समझकर अपमान ,  प्रेरक लघुकथा लग्जरी शोरूम में सादा कुर्ता पहने एक आदमी सुबह के दस बजे थे   । शोरूम की कांच की दीवारें चमक रही थीं , AC   की ठंडी हवा और महंगी कारों की कतारें अमीरी का प्रदर्शन कर रही थीं   । इसी माहौल में एक आदमी अंदर जाता  हुआ — सादा कुर्ता ,  पुरानी चप्पल गले में गमछा  और चेहरे पर गहरी शांति। उसका नाम था   मोहन   । रिसेप्शन पर बैठी युवती ने ऊपर से नीचे तक देखा। नजर कुछ पल रुकी ,  फिर जैसे फिसल गई। यह नज़र सम्मान की नहीं ,  तौलने की थी।   पूर्व पत्नी और अपमान का पहला वार अभी केबिन से तेज कदमों की आवाज़ आई। ब्रांडेड कपड़े ,  ऊँची एड़ी ,  आत्मविश्वास से भरी चाल — नंदिनी ,  शोरूम की मैनेजर। नजर मोहन  पर पड़ी। चेहरा सख्त हो गया। “ तुम ?” फिर व्यंग्य — “ यह जगह तुम्हारे लिए नहीं है । यह लग्जरी कार का  शोरूम है ,  कोई सस्ता बाज़ार नहीं। ” कुछ ग्राहक रुक गए। किसी के चेहरे पर मुस्कान थी ,  किसी की आंखों में तिरस्कार।   गरीबी ,...

अटल बिहारी वाजपेयी जयंती: राजनीति का संत, शब्दों का शिल्पी और राष्ट्र का अटल व्यक्तित्व

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 भारत की राजनीति के इतिहास में कुछ व्यक्तित्व ऐसे होते हैं, जो सत्ता से बड़े और समय से भी आगे दिखाई देते हैं। ऐसे ही युगपुरुष थे भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी । उनकी जयंती केवल एक पूर्व प्रधानमंत्री को याद करने का अवसर नहीं, बल्कि लोकतंत्र, मर्यादा, संवाद और राष्ट्रप्रेम के मूल्यों को फिर से जीवित करने का दिन है। अटल जी का नाम आते ही मन में एक ऐसे नेता की छवि उभरती है, जो कठोर निर्णय ले सकता था, लेकिन उसका हृदय अत्यंत कोमल था। जो विरोधियों का भी सम्मान करता था और शब्दों से पुल बनाता था, दीवारें नहीं। अटल बिहारी वाजपेयी: प्रारंभिक जीवन और संस्कार अटल बिहारी वाजपेयी जीवन परिचय अटल बिहारी वाजपेयी का जन्म 25 दिसंबर 1924 को मध्यप्रदेश के ग्वालियर में हुआ। उनके पिता श्री कृष्ण बिहारी वाजपेयी एक शिक्षक और कवि प्रवृत्ति के व्यक्ति थे। परिवार का वातावरण साहित्य, अनुशासन और राष्ट्रचिंतन से भरा हुआ था। बाल्यकाल से ही अटल जी में अध्ययन, लेखन और चिंतन की प्रवृत्ति दिखाई देने लगी थी। वे केवल किताबी ज्ञान तक सीमित नहीं रहे, बल्कि समाज और देश को समझने की जिज्ञासा उनमें प्रारंभ से ही थी। ...

किसान कहे जाएं या अन्नदाता? मेहनत किसान की, मुनाफा दूसरों का

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 किसान दिवस अन्नदाता किसान, MSP समर्थन मूल्य, किसान कर्ज, किसान आत्महत्या, कृषि संकट, किसान आंदोलन, भारतीय किसान (रघुवीर सिंह पंवार ) किसान कहें या अन्नदाता—भारत की आत्मा खेती में बसती है। भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां लगभग एक तिहाई आबादी खेती-किसानी से जुड़ी है। देशवासियों के पेट की भूख की ज्वाला शांत करने वाला वही किसान है, जिसकी मेहनत पर पूरा समाज जीवित है। दुनिया अन्न ग्रहण करके जीती है और उस अन्न का हर दाना किसान की पसीने की कीमत पर पैदा होता है। कड़कड़ाती ठंड, झुलसाती धूप और मूसलाधार बारिश—हर मौसम में किसान खेतों में डटा रहता है। दिन-रात मेहनत करके वह फसल उगाता है, तभी कहीं जाकर लोगों की थाली भरती है। लेकिन विडंबना यह है कि किसान को उसकी मेहनत का फल उसके श्रम के अनुसार नहीं मिल पाता। कभी कम वर्षा, कभी अतिवृष्टि, कभी ओलावृष्टि—प्रकृति की मार किसान की फसल को पल भर में तबाह कर देती है। ऐसे में किसान न अपने परिवार का सही ढंग से पालन कर पाता है, न बच्चों की उच्च शिक्षा, न बेटा-बेटियों की शादी और न ही अपने सपनों का घर बना पाता है। देश के किसान की हालत दिन-ब-दिन दयनीय होती जा ...

हनुमान चालीसा अर्थ सहित (लाइन बाय लाइन) | सरल हिंदी में सम्पूर्ण व्याख्या

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हनुमान चालीसा हिन्दू धर्म का एक अत्यंत श्रद्धेय और प्रभावशाली स्तोत्र है। गोस्वामी तुलसीदास जी द्वारा रचित यह चालीसा केवल पाठ का विषय नहीं, बल्कि भक्ति, साहस, सेवा और आत्मबल का जीवन-दर्शन है। इस विशेष लेख में हम हनुमान चालीसा का मूल पाठ पंक्ति-दर-पंक्ति सरल हिंदी अर्थ सहित प्रस्तुत कर रहे हैं, ताकि श्रद्धालु और पाठक इसका भाव सही रूप में समझ सकें। बजरंगबली की पूजा और आरती का धार्मिक दृश्य हनुमान चालीसा : दोहा (अर्थ सहित) श्रीगुरु चरण सरोज रज, निज मनु मुकुरु सुधारि। → गुरु के चरणों की धूल से अपने मन के दर्पण को शुद्ध करता हूँ। बरनउँ रघुबर बिमल जसु, जो दायकु फल चारि॥ → मैं श्रीराम के निर्मल यश का वर्णन करता हूँ, जो धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष प्रदान करता है। बुद्धिहीन तनु जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। → स्वयं को अल्पबुद्धि जानकर पवनपुत्र हनुमान का स्मरण करता हूँ। बल बुद्धि विद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस विकार॥ → हे हनुमान! मुझे बल, बुद्धि और विद्या दीजिए, मेरे सभी कष्ट दूर कीजिए। चौपाई : पंक्ति-दर-पंक्ति सरल अर्थ जय हनुमान ज्ञान गुण सागर। → हनुमान जी ज्ञान और सद्गुणों के सागर हैं। जय कपीस तिहुँ...